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अल्पकालिक और दीर्घकालिक उपायों से हीटवेव से निपटें

भारत में हीटवेव की बढ़ती तीव्रता और आवृत्ति अब केवल एक मौसमी संकट नहीं, बल्कि एक संरचनात्मक, सामाजिक-आर्थिक और सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती बन चुकी है। वर्ष 2025 में मार्च के मध्य में ही गंभीर हीटवेव का प्रादुर्भाव दर्शाता है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव अब समय से पूर्व और अधिक व्यापक हो चुके हैं। यह परिघटना वर्ष 2024 की तुलना में 20 दिन पूर्व घटित हुई, जो इस बात का संकेत है कि देश को नीतिगत, तकनीकी एवं समाज-केन्द्रित उपायों की तुरंत आवश्यकता है।

बढ़ते तापमान के कारण शारीरिक थकावट, ऊष्मा तनाव और मृत्यु जैसे स्वास्थ्य संकट उत्पन्न हो रहे हैं। जब बाहरी तापमान 37 डिग्री सेल्सियस के निकट पहुँचता है, तो शरीर अपनी आंतरिक ऊष्मा को निष्कासित नहीं कर पाता, जिससे अंगों पर दुष्प्रभाव पड़ता है। इसके परिणामस्वरूप किडनी, मस्तिष्क एवं यकृत जैसे अंग प्रभावित होते हैं और यह स्थिति गरीब व सीमांत समुदायों के लिए और भी घातक सिद्ध होती है।

हीटवेव का प्रभाव केवल स्वास्थ्य तक सीमित नहीं रहता, यह कृषि, निर्माण, बिजली आपूर्ति तथा श्रम उत्पादकता को भी बाधित करता है। भारत जैसे श्रम-प्रधान देश में, जहाँ लगभग 380 मिलियन लोग ताप-संवेदनशील क्षेत्रों में कार्य करते हैं, हीटवेव के कारण कार्य घंटे कम होते हैं और आय में गिरावट आती है। 2023 में भारत में 6% कार्य घंटे ताप तनाव के कारण नष्ट हुए, जिससे प्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रीय GDP का 3-5% ह्रास होता है।

हीटवेव सामाजिक विषमता को और गहरा करती है। महिलाएँ, वृद्ध, प्रवासी, असंगठित क्षेत्र के श्रमिक और शहरी गरीब इससे सर्वाधिक प्रभावित होते हैं। महिलाओं पर सामाजिक व सांस्कृतिक प्रतिबंधों के चलते रसोई और घरेलू कार्यों में अधिक समय बिताना पड़ता है, जिससे वे हीट स्ट्रेस के उच्च जोखिम में रहती हैं। शहरी गरीब, संकरी बस्तियों और उच्च-घनत्व वाले क्षेत्रों में, ‘घरों के भीतर रहो’ जैसी सलाह का पालन भी नहीं कर सकते।

भारत में ताप लहरों की योजना 2013 में अहमदाबाद द्वारा शुरू की गई थी, जो अब 23 राज्यों और 140 शहरों तक फैल चुकी है। किंतु अधिकतर योजनाएँ मात्र तापमान आधारित पूर्व चेतावनी, जन-जागरूकता, स्वास्थ्य प्रणाली की तैयारी, दीर्घकालीन उपाय जैसे हरित क्षेत्र बढ़ाना और डेटा संग्रह पर सीमित हैं। इन योजनाओं का समुचित क्रियान्वयन केवल उन्हीं स्थानों पर प्रभावी रहा है जहाँ स्थानीय प्रशासन, विशेषज्ञ संस्थाएँ और समुदाय मिलकर कार्य करते हैं।

राज्यों को अपने हीट एक्शन प्लान को स्थानीय संवेदनशीलता के आधार पर अद्यतन करना चाहिए। इन योजनाओं में तापमान के साथ आर्द्रता और वायु गति जैसे अन्य कारकों को भी शामिल किया जाना चाहिए। योजनाओं को मार्च की शुरुआत से सक्रिय किया जाए और जिम्मेदारियों को स्पष्ट रूप से विभाजित किया जाए। केवल सतही योजनाएँ पर्याप्त नहीं हैं, अपितु स्थानीय डेटा आधारित रणनीतियाँ बनानी होंगी।

सटीक डेटा-संग्रह और विश्लेषण की आवश्यकता है। वर्तमान में, हीट स्ट्रेस से संबंधित मृत्यु और बीमारी के आँकड़े अपूर्ण होते हैं, जिससे नीतियाँ प्रभावी नहीं बन पातीं। आवश्यकता इस बात की है कि उन क्षेत्रों और समूहों की पहचान हो जहाँ ताप तनाव से सर्वाधिक मृत्यु हो रही है, जिससे लक्षित हस्तक्षेप संभव हो सके और नीति निर्माण अधिक वैज्ञानिक हो।

ब्रिटेन जैसे देशों ने दिन-रात्रि तापमान के आधार पर हीट हेल्थ अलर्ट प्रणाली शुरू की है। भारत को भी दिन-रात्रि तापमान के संयोजन से थर्मल कम्फर्ट और कार्य के उपयुक्त समय निर्धारण की प्रणाली विकसित करनी चाहिए। इससे स्कूलों, कार्यालयों और निर्माण स्थलों पर कार्य की योजना को बेहतर बनाया जा सकेगा, जिससे स्वास्थ्य और उत्पादकता दोनों की रक्षा होगी।

दीर्घकालिक उपायों में, शहरी ढांचे का ताप सहनशील बनाना, बेहतर निर्माण सामग्री को बढ़ावा देना, और हरित अवसंरचना को विकसित करना आवश्यक है। सरकार को विशेष रूप से असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए मजदूरी हानि की स्थिति में वित्तीय सहायता प्रदान करनी चाहिए, जिससे वे आजीविका संकट से बच सकें और योजना का लाभ वंचितों तक पहुँचे।

‘घर के भीतर रहें’ जैसी सामान्य सलाह हर स्थान पर प्रभावी नहीं है। अध्ययन बताते हैं कि गरीब मोहल्लों में सीमित वायुवीजन और अधिक जनघनत्व के कारण तापमान घर के भीतर भी बाहर से अधिक हो सकता है। इसलिए, शहरों के भीतर भी सामाजिक और भौगोलिक विशिष्टताओं के आधार पर हीट एडवाइजरी तैयार करना नीतिगत विवेक की आवश्यकता है।

वर्तमान में कुछ राज्य ‘कूल रूफ पॉलिसी’ जैसी पहलें कर रहे हैं, जिससे इमारतों की छतों को ताप परावर्तक सामग्री से ढंका जा सके। शहरों में शीतगृह जैसे ‘ग्रीष्मकालीन शरणालय’ भी विकसित किए जाने चाहिए। इसके साथ-साथ जल बिंदुओं की उपलब्धता, ORS वितरण, कार्य समय में लचीलापन और दोपहर के समय खुले कार्य बंद रखने जैसे व्यावहारिक उपाय आवश्यक हैं।

ताप लहर से निपटने के लिए की गई रणनीतिक निवेश अत्यधिक लाभप्रद सिद्ध होते हैं। इसलिए, अल्पकालिक प्रयासों से आगे बढ़कर, बहु-एजेंसी समन्वय, बीमा प्रावधान, सामाजिक सुरक्षा, और समाज-केन्द्रित दृष्टिकोण के माध्यम से दीर्घकालिक और न्यायपूर्ण रणनीतियाँ अपनाना आवश्यक है। जब तक नीति-निर्माता ताप लहर को एक समानता का मुद्दा नहीं मानते, तब तक स्थायी समाधान संभव नहीं होगा।

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