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पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले का जवाब

पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले ने एक बार पुनः यह स्पष्ट किया है कि भारत के विरुद्ध सीमा पार से संचालित हिंसा महज़ एक जघन्य कृत्य नहीं, बल्कि एक सुविचारित रणनीतिक संकेत है। यह हमला उस समय हुआ जब कश्मीर में पर्यटन की नई शुरुआत हो रही थी और अमेरिका के उपराष्ट्रपति भारत की यात्रा पर थे। यह स्पष्ट रूप से भारत की आंतरिक स्थिरता को चोट पहुँचाने और उसकी अंतरराष्ट्रीय छवि को धूमिल करने की कोशिश है, जो भारत-पाक संबंधों में नई अस्थिरता का संकेत देती है।

यह घटना उस स्थान पर हुई जिसे ‘मिनी स्विट्ज़रलैंड’ कहा जाता है — एक शांतिपूर्ण स्थल, जो पिकनिक, टट्टू सवारी और पारिवारिक भ्रमण के लिए जाना जाता है। इस प्रकार के स्थलों पर किया गया हमला केवल मानव जीवन पर नहीं, बल्कि उस सामूहिक स्मृति पर भी हमला है जिसमें कश्मीर को सुरक्षित पर्यटन स्थल के रूप में देखा जाता रहा है। यह आतंक का एक प्रतीकात्मक आघात है, जो लोगों में भय उत्पन्न करता है और क्षेत्र की आर्थिक-सामाजिक पुनरुत्थान प्रक्रिया को बाधित करता है।

यह हमला भारत की खुफिया तंत्र की गंभीर विफलता की ओर भी संकेत करता है। पहलगाम न केवल एक पर्यटक स्थल है, बल्कि अमरनाथ यात्रा का प्रमुख प्रवेश द्वार भी है। ऐसे संवेदनशील स्थान पर निगरानी और सुरक्षात्मक व्यवस्थाओं का अभाव होना चिंताजनक है। भारत ने ड्रोन और तकनीकी निगरानी में निवेश किया है, फिर भी ऐसी चूक से सुरक्षा संस्थानों की सतर्कता पर सवाल खड़े होते हैं, जो भविष्य की नीति समीक्षा की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

इस हमले की जिम्मेदारी ‘द रेसिस्टेंस फ्रंट’ ने ली है, जो लश्कर-ए-तैयबा का ही एक छद्म संगठन है। यह समूह पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई से गहराई से जुड़ा हुआ है। दशकों से ऐसे संगठनों के माध्यम से भारत में अस्थिरता उत्पन्न करने का यह वही पुराना पैटर्न है, जिसे एक ‘विनाइल ऑफ डिनायबिलिटी’ के साथ संचालित किया जाता रहा है। इस परिघटना की पुनरावृत्ति भारत की प्रतिरोधक क्षमता में विश्वास की कमी को उजागर करती है।

यदि भारत को पाकिस्तान के रणनीतिक गणित को प्रभावित करना है, तो उसे केवल घटना-विशेष प्रतिक्रियाओं से आगे जाकर दीर्घकालिक प्रतिरोध नीति को अपनाना होगा। इसमें राजनीतिक सर्वसम्मति, खुफिया क्षमताओं की निरंतरता और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सघन कूटनीतिक दबाव का प्रयोग आवश्यक है। पाकिस्तान की रणनीति अल्पकालिक प्रतिकिया के बजाय दीर्घकालिक संयम से अधिक असहज होती है, यही भारत की रणनीतिक दिशा होनी चाहिए।

भारत की प्रतिक्रिया केवल नैतिक आक्रोश पर आधारित नहीं होनी चाहिए, बल्कि रणनीतिक दक्षता पर आधारित होनी चाहिए। प्रतिरोध का अर्थ केवल प्रतिशोध नहीं, बल्कि ऐसे उपायों का चयन है जो शत्रु की व्यवहारिक प्रवृत्ति को दीर्घकाल में बदल सके। इसमें कूटनीतिक अलगाव, व्यापारिक समीक्षाएं और गुप्त अभियानों के माध्यम से आतंकवादी आधारभूत संरचनाओं को निशाना बनाना शामिल होना चाहिए।

पाकिस्तान के भीतर की अस्थिरता भी इसके उकसावेपूर्ण कृत्यों का मुख्य कारण है। आर्थिक दिवालियापन, राजनीतिक दिशाहीनता और सामाजिक असंतोष ने सेना के लिए कश्मीर को एक आंतरिक शक्ति-संतुलन के उपकरण में परिवर्तित कर दिया है। जनरल असीम मुनीर जैसे आक्रामक नेतृत्व ने ‘प्रबंधित वृद्धि’ की पुरानी सैन्य नीति को फिर से सक्रिय किया है, जो सीमित स्तर पर हिंसा के द्वारा भारत को उत्तेजित करने का प्रयास करती है।

इतिहास गवाह है कि पाकिस्तान ने हर बार अपने आंतरिक संकटों को कश्मीर में सैन्य या अर्धसैन्य गतिविधियों के माध्यम से हल करने का प्रयास किया है। करगिल युद्ध (1999), संसद पर हमला (2001), मुंबई हमला (2008), उरी (2016) और पुलवामा (2019)—ये सभी उदाहरण इस दृष्टिकोण की पुष्टि करते हैं। अतः यह मानना भूल होगी कि ये घटनाएँ अलग-थलग हैं; बल्कि ये एक दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा हैं।

भारत के लिए अब यह आवश्यक है कि वह अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए एक प्रभावी और निरंतर प्रतिरोध तंत्र का निर्माण करे। पहलगाम जैसे हमले भारत की सामान्यता की पुनर्स्थापना पर आघात करते हैं। पर्यटकों पर हमला करना कश्मीर की सामान्य होती छवि पर वार है, जिसे भारत ने वर्षों में निर्मित किया है। इस चुनौती को केवल सैनिक प्रतिक्रिया से नहीं, बल्कि समन्वित रणनीति से ही रोका जा सकता है।

भारत की आंतरिक प्रतिक्रिया भी उतनी ही निर्णायक होनी चाहिए जितनी बाह्य। कश्मीर के युवाओं को अवसरों, शिक्षा और समावेशी विकास से जोड़ना आवश्यक है। आतंकियों को स्थानीय समर्थन से वंचित करना तभी संभव है जब केंद्र सरकार विश्वास का वातावरण निर्मित करे। पहलगाम का हमला भारत को याद दिलाता है कि केवल स्पष्ट नीति और ठोस कार्यवाही ही आक्रामकता को रोक सकती है। यही समय है जब हम स्पष्ट संदेश दें — भारत की सहनशीलता उसकी कमजोरी नहीं, रणनीतिक विवेक है, परंतु इसकी सीमाएँ स्पष्ट हैं।

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