प्रश्न: पारिस्थितिक बहाली के लिए बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण योजनाओं के संभावित लाभों और चुनौतियों पर चर्चा कीजिए। जलवायु परिवर्तन और जैव-विविधता हानि से निपटने में ये योजनाएं कितनी प्रभावी हैं?
Discuss the potential benefits and challenges of large-scale tree planting schemes for ecological restoration. How effective are these schemes in addressing climate change and biodiversity loss?
उत्तर: पारिस्थितिक बहाली हेतु वृक्षारोपण योजनाएं मानव-प्रेरित क्षति से प्रभावित पारिस्थितिक तंत्रों में वृक्षों की संरचित पुनःस्थापना को दर्शाती हैं। इन योजनाओं का उद्देश्य जैविक क्रियावली की पुनर्बहाली, पर्यावरणीय सेवाओं की पुनर्स्थापना तथा दीर्घकालीन पारिस्थितिक संतुलन को सुनिश्चित करना होता है।
वृक्षारोपण योजनाओं के संभावित लाभ
(1) कार्बन पृथक्करण और जलवायु शमन में योगदान: वृक्ष वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर दीर्घकालीन भंडारण में सहायक होते हैं, जिससे ग्रीनहाउस प्रभाव कम होता है और वैश्विक तापमान वृद्धि की गति को नियंत्रित करने में वृक्षारोपण महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
(2) पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं की पुनर्बहाली: वृक्षारोपण मृदा अपरदन रोकता है, जलवायु विनियमन करता है, परागण को बढ़ावा देता है और खाद्य श्रृंखलाओं को स्थिर करता है, जिससे पारिस्थितिक तंत्र की सेवाएं पुनः सक्रिय होती हैं और पर्यावरणीय उत्पादकता में वृद्धि होती है।
(3) जैव-विविधता के आवासों की बहाली: स्थानिक उपयुक्तता के आधार पर किए गए वृक्षारोपण से संकटग्रस्त प्रजातियों के आवास पुनर्स्थापित होते हैं और पारिस्थितिक तंत्र में जैव-विविधता की संरचना और कार्यशीलता दोबारा संगठित होती है।
(4) सामाजिक-आर्थिक पुनर्जीवन का स्रोत: वृक्षारोपण से ग्रामीण समुदायों में रोजगार, कृषि-वानिकी अवसर और पारंपरिक संसाधनों की पुनर्प्राप्ति संभव होती है, जिससे सामाजिक संरचना में स्थायित्व और आर्थिक सुरक्षा को प्रोत्साहन मिलता है।
(5) जल संसाधनों का संरक्षण और संवर्धन: वृक्षों की छाया और जड़ प्रणाली वाष्पीकरण कम करती है, भूजल रिचार्ज को बढ़ावा देती है और जल धारण क्षमता बढ़ाती है, जिससे वर्षा पर निर्भर क्षेत्रों में जलस्रोतों की पुनरुद्धार प्रक्रिया सशक्त होती है।
वृक्षारोपण योजनाओं की प्रमुख चुनौतियाँ
(1) मोनोकल्चर आधारित वृक्षारोपण का जोखिम: प्रजातीय विविधता की उपेक्षा कर एकरूपी वृक्षारोपण जैव-विविधता को बाधित करता है, जिससे पारिस्थितिक संतुलन टूटता है और दीर्घकाल में तंत्र अधिक संवेदनशील हो जाता है।
(2) सामाजिक सहभागिता की अपर्याप्तता: स्थानीय समुदायों को उपेक्षित कर क्रियान्वित योजनाएं सामाजिक अस्वीकार्यता उत्पन्न करती हैं, जिससे दीर्घकालीन संरक्षण का उद्देश्य बाधित होता है और वृक्षारोपण केवल कागज़ी पहल बनकर रह जाता है।
(3) अस्थानिक प्रजातियों का अनुचित चयन: जलवायु और मृदा की उपेक्षा कर लगाए गए बाहरी वृक्ष पारिस्थितिक तंत्र को बाधित करते हैं, जल संसाधनों पर दबाव डालते हैं और स्थानीय जैविक संरचनाओं को प्रतिस्थापित कर देते हैं।
(4) दीर्घकालीन निगरानी और रखरखाव की कमी: प्रारंभिक रोपण के पश्चात देखरेख की उपेक्षा वृक्षों की मृत्यु दर को बढ़ाती है, जिससे परियोजना की प्रभावशीलता समाप्त होती है और संसाधन व्यर्थ होते हैं।
(5) भूमि विवाद और पारंपरिक अधिकारों का अतिक्रमण: सार्वजनिक या आदिवासी भूमि पर बिना सहमति वृक्षारोपण भूमि स्वामित्व संघर्षों को जन्म देता है, जिससे सामाजिक अशांति और योजनाओं के विरुद्ध विरोध उत्पन्न होता है।
जलवायु परिवर्तन और जैव-विविधता हानि से निपटने में प्रभावशीलता
(1) सीमित लेकिन रणनीतिक योगदान: वृक्षारोपण कार्बन पृथक्करण में सहायक है, किंतु उत्सर्जन में कटौती, ऊर्जा रूपांतरण और भूमि उपयोग नीति के साथ एकीकृत न हो तो यह जलवायु संकट को केवल आंशिक रूप से ही संबोधित कर सकता है।
(2) पारिस्थितिक प्रासंगिकता की अनिवार्यता: प्रभावशीलता इस पर निर्भर करती है कि वृक्षारोपण किस प्रकार की पारिस्थितिक परिस्थिति में किया गया है—अनुकूल स्थानों पर यह प्रभावी है, जबकि अनुकूलनहीन प्रयासों से नुकसान अधिक हो सकता है।
(3) जैव-विविधता को पुनर्सृजित करने की संभाव्यता: स्थानीय प्रजातियों को प्राथमिकता देकर विविधतापूर्ण वृक्षारोपण जैविक असंतुलन को सुधार सकता है, किंतु यह तभी संभव है जब बहुस्तरीय और वैज्ञानिक योजना से कार्यान्वयन हो।
(4) नीतिगत समन्वय की केंद्रीय भूमिका: जलवायु शमन, वन नीति, जैव-विविधता अधिनियम और भूमि सुधार योजनाओं के एकीकृत दृष्टिकोण के बिना वृक्षारोपण योजनाएं प्रभावशाली संरचनात्मक परिवर्तन नहीं ला सकतीं।
(5) दीर्घकालीन लचीलापन निर्माण की क्षमता: यदि वृक्षारोपण को जलवायु अनुकूलन, जैव-विविधता संरक्षण और सामाजिक सहभागिता के साथ समन्वित किया जाए, तो यह दीर्घकालीन पर्यावरणीय स्थायित्व और लचीलापन सुनिश्चित करने का माध्यम बन सकता है।
भारत में वृक्षारोपण योजनाएं जलवायु और जैव-विविधता संकट के विरुद्ध एक शक्तिशाली उपकरण हो सकती हैं, बशर्ते ये पारिस्थितिक उपयुक्तता, सामाजिक न्याय और नीतिगत समन्वय के साथ एकीकृत हों। केवल मात्रात्मक नहीं, बल्कि गुणात्मक दृष्टिकोण आवश्यक है।