प्रश्न: जम्मू एवं कश्मीर में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से निपटने में सुरक्षा-केंद्रित दृष्टिकोण की प्रभावशीलता का समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए। इसके लिए कौन-सी वैकल्पिक रणनीतियां अपनाई जा सकती हैं?
Critically evaluate the effectiveness of the security-centric approach in tackling Pakistan-sponsored terrorism in Jammu and Kashmir. Which alternative strategies can be adopted for this?
उत्तर: जम्मू एवं कश्मीर में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से निपटने हेतु भारत ने सुरक्षा-केंद्रित दृष्टिकोण अपनाया है, जिसमें सैन्य अभियानों, खुफिया तंत्र की मजबूती और सीमा सुरक्षा को प्राथमिकता दी गई है। हालांकि, इस रणनीति की प्रभावशीलता पर विभिन्न स्तरों पर प्रश्न उठाए गए हैं।
सुरक्षा-केंद्रित दृष्टिकोण की आलोचना
(1) स्थानीय असंतोष में वृद्धि: लगातार सैन्य उपस्थिति और अभियानों के कारण स्थानीय जनता में असंतोष और अविश्वास की भावना बढ़ी है, जिससे आतंकवाद के प्रति सहानुभूति उत्पन्न हो सकती है। इससे आतंकवादियों को स्थानीय समर्थन मिल सकता है, जो सुरक्षा बलों के लिए चुनौतीपूर्ण है।
(2) मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप: सुरक्षा बलों पर अक्सर मानवाधिकार उल्लंघन, जैसे कि अवैध हिरासत और बल प्रयोग, के आरोप लगते हैं, जिससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आलोचना होती है। यह स्थिति स्थानीय और वैश्विक स्तर पर भारत की छवि को प्रभावित कर सकती है।
(3) आर्थिक गतिविधियों पर प्रभाव: लगातार कर्फ्यू और सुरक्षा प्रतिबंधों के कारण व्यापार, पर्यटन और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में आर्थिक मंदी देखी गई है, जिससे स्थानीय विकास प्रभावित हुआ है। यह आर्थिक असंतोष युवाओं को कट्टरपंथ की ओर ले जा सकता है।
(4) आतंकवादियों की नई भर्ती: सुरक्षा अभियानों में मारे गए आतंकवादियों के स्थान पर नए युवाओं की भर्ती हो रही है, जिससे आतंकवाद की समस्या बनी रहती है। यह चक्रवात आतंकवाद को समाप्त करने में बाधा उत्पन्न करता है।
(5) राजनीतिक संवाद की कमी: सिर्फ सैन्य उपायों पर ध्यान केंद्रित करने से राजनीतिक समाधान की संभावनाएं कम हो जाती हैं, जिससे दीर्घकालिक शांति स्थापित नहीं हो पाती। राजनीतिक संवाद की अनुपस्थिति से जनता में असंतोष बढ़ सकता है।
अपनाई जाने वाली वैकल्पिक रणनीतियाँ
(1) राजनीतिक संवाद की पुनः स्थापना: स्थानीय नेताओं, नागरिक समाज और पाकिस्तान के साथ समावेशी संवाद प्रक्रिया शुरू करना आवश्यक है। पूर्व में ‘बैक चैनल’ वार्ताओं से सकारात्मक संकेत मिले थे, लेकिन राजनीतिक अस्थिरता के कारण प्रगति बाधित हुई।
(2) आर्थिक विकास और रोजगार सृजन: ₹28,400 करोड़ की औद्योगिक योजना से जम्मू-कश्मीर में 4.5 लाख रोजगार सृजन की संभावना है। 1,729 इकाइयों की स्थापना से 62,000 नौकरियां उत्पन्न हुईं।
(3) शिक्षा और सामाजिक सशक्तिकरण: ‘तेजस्विनी’ योजना के तहत 18-35 वर्ष की महिलाओं को ₹5 लाख तक की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है, जिससे वे अपने व्यवसाय शुरू कर सकें।
(4) मानवाधिकारों का संरक्षण: सुरक्षा बलों को मानवाधिकारों के प्रति संवेदनशील बनाना और उल्लंघनों की पारदर्शी जांच सुनिश्चित करना आवश्यक है। मानवाधिकार परिषद की रिपोर्टों में यह स्पष्ट किया गया है कि आतंकवाद से निपटने में मानवाधिकारों का सम्मान आवश्यक है।
(5) अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और समर्थन: सऊदी क्राउन प्रिंस ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री से मुलाकात कर भारत-पाकिस्तान संवाद की आवश्यकता पर बल दिया, जिससे क्षेत्रीय शांति और स्थिरता सुनिश्चित की जा सके।
सुरक्षा उपायों के साथ-साथ राजनीतिक संवाद, आर्थिक विकास और सामाजिक सशक्तिकरण जैसी वैकल्पिक रणनीतियाँ अपनाने से आतंकवाद की समस्या को प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया जा सकता है। इससे स्थायी शांति की दिशा में प्रगति संभव है।