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प्रश्न: भारत में गैर-सब्सिडी वाले उर्वरकों को विनियमित करने के तर्कों का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिए। इस नीति परिवर्तन से जुड़े संभावित लाभ और चुनौतियां क्या हैं?

Critically analyze the arguments for deregulating non-subsidised fertilisers in India. What are the potential benefits and challenges associated with this policy shift?

उत्तर: गैर-सब्सिडी वाले उर्वरक वे उर्वरक हैं जिन पर सरकार द्वारा कोई वित्तीय सहायता नहीं दी जाती। इनकी कीमतें बाजार आधारित होती हैं और इनकी गुणवत्ता, वितरण और मूल्य निर्धारण पर नियंत्रण रखने के लिए सरकार विभिन्न विनियामक उपायों का पालन करती है।​

भारत में गैर-सब्सिडी वाले उर्वरकों को विनियमित करने के तर्क

(1) कृषकों की सुरक्षा: विनियमन से किसानों को उर्वरकों की कीमतों में अत्यधिक वृद्धि से सुरक्षा मिलती है, जिससे उनकी कृषि लागत नियंत्रित रहती है और आय में स्थिरता बनी रहती है।​

(2) गुणवत्ता सुनिश्चित करना: सरकारी नियंत्रण के माध्यम से उर्वरकों की गुणवत्ता मानकों का पालन सुनिश्चित किया जाता है, जिससे किसानों को प्रभावी और सुरक्षित उत्पाद मिलते हैं।​

(3) बाजार में अनुचित प्रतिस्पर्धा की रोकथाम: विनियमन से उर्वरक निर्माताओं के बीच अनुचित प्रतिस्पर्धा और मूल्य युद्ध को रोका जा सकता है, जिससे बाजार में स्थिरता बनी रहती है।​

(4) नवाचार को प्रोत्साहन: विनियमन के तहत स्पष्ट दिशा-निर्देशों के माध्यम से उर्वरक कंपनियों को नवाचार और नए उत्पादों के विकास के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है।​

(5) पर्यावरणीय संतुलन: उर्वरकों के उपयोग पर नियंत्रण से पर्यावरणीय प्रभावों, जैसे मिट्टी की उर्वरता में गिरावट और जल प्रदूषण, को कम किया जा सकता है।​

नीति परिवर्तन से जुड़े संभावित लाभ

(1) नवाचार और विविधता में वृद्धि: गैर-सब्सिडी वाले उर्वरकों के विनियमन से उर्वरक उद्योग में नवाचार को बढ़ावा मिलेगा, जिससे किसानों को विभिन्न विकल्प उपलब्ध होंगे और कृषि उत्पादकता में सुधार होगा।​

(2) किसानों की लागत में कमी: उचित मूल्य निर्धारण और गुणवत्ता सुनिश्चित करने से किसानों की उर्वरक पर होने वाली लागत में कमी आएगी, जिससे उनकी कुल कृषि लागत घटेगी।​

(3) बाजार में पारदर्शिता: विनियमन से उर्वरक बाजार में पारदर्शिता बढ़ेगी, जिससे किसानों को मूल्य निर्धारण और उत्पाद गुणवत्ता के बारे में स्पष्ट जानकारी मिलेगी।​

(4) स्थिर आपूर्ति श्रृंखला: सरकारी नियंत्रण से उर्वरकों की आपूर्ति श्रृंखला में स्थिरता आएगी, जिससे किसानों को समय पर और पर्याप्त मात्रा में उर्वरक उपलब्ध होगा।​

(5) निर्यात अवसरों में वृद्धि: उर्वरकों की गुणवत्ता और आपूर्ति में सुधार से भारत के उर्वरक उद्योग के निर्यात अवसर बढ़ेंगे, जिससे विदेशी मुद्रा अर्जन में वृद्धि होगी।​

नीति परिवर्तन से जुड़ी चुनौतियां

(1) मूल्य निर्धारण में जटिलता: विनियमन के तहत उचित मूल्य निर्धारण सुनिश्चित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, जिससे किसानों और निर्माताओं दोनों के लिए असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।​

(2) प्रशासनिक बोझ में वृद्धि: उर्वरकों के विनियमन के लिए आवश्यक निरीक्षण और निगरानी से सरकारी एजेंसियों पर प्रशासनिक बोझ बढ़ सकता है, जिससे संसाधनों की आवश्यकता बढ़ेगी।​

(3) किसानों में जागरूकता की कमी: गैर-सब्सिडी वाले उर्वरकों के उपयोग और लाभों के बारे में किसानों में जागरूकता की कमी हो सकती है, जिससे उनके अपनाने की गति धीमी हो सकती है।​

(4) नवीन उत्पादों की धीमी स्वीकृति: भारत में नए उर्वरक उत्पादों के पंजीकरण की प्रक्रिया लंबी और जटिल है, जिससे नवीन उत्पादों की बाजार में उपलब्धता में देरी हो सकती है।​

(5) वैश्विक मूल्य परिवर्तनों का प्रभाव: भारत के उर्वरक उद्योग की वैश्विक बाजारों पर निर्भरता के कारण, वैश्विक मूल्य परिवर्तनों और आपूर्ति श्रृंखला में उतार-चढ़ाव से घरेलू बाजार प्रभावित हो सकता है।​

भारत में गैर-सब्सिडी वाले उर्वरकों का विनियमन किसानों की सुरक्षा, गुणवत्ता सुनिश्चित करने और बाजार स्थिरता के लिए आवश्यक है। हालांकि, इसके प्रभावी कार्यान्वयन के लिए मूल्य निर्धारण, प्रशासनिक क्षमता और किसानों की जागरूकता जैसे पहलुओं पर विशेष ध्यान देना आवश्यक है।

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