भारत के लॉजिस्टिक्स क्षेत्र के डीकार्बोनाइजेशन को आगे बढ़ाना
भारत के लॉजिस्टिक्स क्षेत्र को वर्तमान समय में हरित परिवर्तन की अत्यंत आवश्यकता है, क्योंकि यह क्षेत्र देश के कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में लगभग 13.5% का योगदान करता है। भारत के “विकसित भारत 2047” के दृष्टिकोण में जहां समावेशी और संतुलित विकास पर बल है, वहीं एक कुशल, आधुनिक और सतत लॉजिस्टिक्स नेटवर्क इसकी आधारशिला के रूप में देखा जा रहा है। इस परिवर्तन का उद्देश्य केवल आर्थिक दक्षता नहीं, बल्कि पर्यावरणीय उत्तरदायित्व को भी समाहित करना है, ताकि भारत की विकास यात्रा वास्तव में न्यायोचित और दीर्घकालिक बन सके।
भारत में माल और यात्री परिवहन का बड़ा हिस्सा सड़क परिवहन पर निर्भर है, जो कार्बन उत्सर्जन का प्रमुख स्रोत है। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अनुसार, सड़क परिवहन कुल लॉजिस्टिक्स उत्सर्जन का 88% उत्पन्न करता है, जिसमें ट्रक परिवहन से 38% उत्सर्जन होता है। लगभग 90% यात्री और 70% मालवहन सड़कों से होता है, जिससे लॉजिस्टिक्स क्षेत्र अत्यधिक कार्बन-सघन बन गया है। इस परिवहन निर्भरता को घटाए बिना भारत की कार्बन न्यूट्रैलिटी की दिशा में कोई ठोस प्रगति संभव नहीं है।
वर्तमान में सरकार द्वारा जल परिवहन को बढ़ावा देने की दिशा में अनेक नीतियाँ अपनाई गई हैं। 2030 तक अंतर्देशीय जलमार्गों पर मालवहन को तीन गुना और तटीय शिपिंग को 1.2 गुना तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है। जल परिवहन सड़क के मुकाबले अधिक ऊर्जा दक्ष और पर्यावरण-मित्र होता है। इसके विस्तार से लॉजिस्टिक्स की स्थिरता बढ़ेगी और शहरी भीड़भाड़ एवं सड़क अधिभार की समस्याएं भी कम होंगी। यह रणनीति विशेष रूप से पूर्वी भारत जैसे क्षेत्रों में समावेशी विकास को सशक्त बना सकती है।
रेलवे को लॉजिस्टिक्स क्षेत्र में एक प्रमुख घटक के रूप में पुनः स्थापित करना अत्यंत आवश्यक है। चीन और अमेरिका जैसे देशों ने सड़क से रेल की ओर परिवहन को स्थानांतरित कर अपने कार्बन पदचिह्न में उल्लेखनीय कमी लाई है। भारत में रेलवे नेटवर्क का विद्युतीकरण तीव्र गति से हो रहा है, जिससे यह शून्य-उत्सर्जन आधारित परिवहन साधन बनने की दिशा में अग्रसर है। यदि मालवहन में रेलवे की हिस्सेदारी को बढ़ाया जाए, तो लॉजिस्टिक्स क्षेत्र के समग्र कार्बन उत्सर्जन में तीव्र गिरावट संभव है।
सड़क परिवहन को अधिक स्वच्छ और कुशल बनाने हेतु ढाँचागत एवं तकनीकी नवाचार की आवश्यकता है। हाल ही में दिल्ली-जयपुर राजमार्ग पर ओवरहेड इलेक्ट्रिक वायर प्रणाली के पायलट प्रोजेक्ट ने लॉजिस्टिक्स के हरितीकरण की एक नई दिशा दिखाई है। इस प्रणाली से विद्युत चालित ट्रकों की दक्षता बढ़ेगी और डीज़ल निर्भरता घटेगी। यदि इस मॉडल को राष्ट्रीय स्तर पर लागू किया जाए, तो सड़क परिवहन के उत्सर्जन में व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य कमी लाई जा सकती है।
तटीय और अंतर्देशीय जल परिवहन में ग्रीन फ्यूल्स का उपयोग एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तनकारी कदम हो सकता है। अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन द्वारा 2050 तक समुद्री परिवहन उत्सर्जन में 50% की कटौती के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए, भारत को एलएनजी, जैव ईंधन, अमोनिया और हाइड्रोजन जैसे वैकल्पिक ईंधनों के प्रयोग को प्राथमिकता देनी चाहिए। साथ ही, सौर-सहायित नौकाएं और इलेक्ट्रिक बार्ज का समावेश भी इस क्षेत्र को पर्यावरणीय रूप से उत्तरदायी बना सकता है।
वायु परिवहन का डीकार्बनाइजेशन सबसे चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि यह क्षेत्र परिष्कृत ईंधनों पर अत्यधिक निर्भर करता है। हालांकि, सतत विमानन ईंधनों (SAF) में प्रगति और अन्य परिवहन साधनों में दक्षता सुधार से इस क्षेत्र के उत्सर्जन को आंशिक रूप से संतुलित किया जा सकता है। इसके लिए नीति समर्थन, अनुसंधान निवेश और अंतरराष्ट्रीय सहयोग अनिवार्य हैं, ताकि तकनीक सुलभ और वाणिज्यिक रूप से टिकाऊ बन सके।
वेयरहाउसिंग क्षेत्र अक्सर लॉजिस्टिक्स डीकार्बनाइजेशन के विमर्श से उपेक्षित रह जाता है, जबकि इसका ऊर्जा उपयोग बहुत उच्च होता है। सौर और पवन ऊर्जा, ऊर्जा दक्ष प्रकाश प्रणाली तथा स्मार्ट तापमान नियंत्रण प्रणालियों से संचालित ग्रीन वेयरहाउस इस क्षेत्र में कार्बन उत्सर्जन को घटाने का एक व्यावहारिक समाधान प्रस्तुत करते हैं। इसके अलावा, वेयरहाउस क्लस्टरों का डिजिटलीकरण और स्मार्ट ट्रैकिंग लॉजिस्टिक्स को समग्र रूप से अधिक पारदर्शी और कुशल बना सकता है।
भारत को लॉजिस्टिक्स डीकार्बनाइजेशन की दिशा में बहु-आयामी रणनीति अपनाने की आवश्यकता है। नीतिगत रूप से, राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति और गती शक्ति योजना जैसे प्रयासों को हरित लक्ष्यों से जोड़ा जाना चाहिए। वित्तीय रूप से, हरित परिवहन के लिए विशेष फंड, रियायती ऋण और निजी निवेश आकर्षित करने हेतु पीपीपी मॉडल की सहायता ली जानी चाहिए। तकनीकी दृष्टि से, डिजिटल लॉजिस्टिक्स प्लेटफॉर्म, ई-फ्रेट मार्केटप्लेस और इलेक्ट्रिक मोबिलिटी को तेज़ी से लागू किया जाना चाहिए।
निष्कर्षतः, भारत के लॉजिस्टिक्स क्षेत्र का डीकार्बनाइजेशन न केवल पर्यावरणीय उत्तरदायित्व की मांग है, बल्कि यह भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्धा, आर्थिक स्थिरता और नागरिकों के जीवन स्तर से भी जुड़ा हुआ है। यदि इस दिशा में समय रहते समन्वित और निर्णायक कदम उठाए जाते हैं, तो यह क्षेत्र न केवल हरित और कुशल बनेगा, बल्कि “विकसित भारत 2047” की परिकल्पना को भी यथार्थ रूप में साकार करेगा। अब निर्णायक कार्रवाई का समय आ चुका है—हरित भविष्य की दिशा में गति देने का समय।